शारदीय नवरात्र पर्व की शुरुआत , माता के मंदिराें में सुबह से भक्ताें की भीड़, चाैक चाैराहाें पर माता की प्रतिमाओं की स्थापना

ग्वालियर। शारदीय नवरात्र पर्व की शुरुआत गुरुवार से हुई। माता के मंदिराें में सुबह से भक्ताें की भीड़ लगना शुरू हाे गई। हालांकि इस दाैरान मंदिराें में काेराेना गाइड लाइन का सख्ती से पालन कराया जा रहा है। सुरक्षित शारीरिक दूरी के साथ ही मास्क लगाना भी अनिवार्य किया गया है। शहर के विभिन्न चौक चौराहों पर मां भवानी की विशाल प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। साथ ही भव्य पंडाल सजाए गए हैं और विधि-विधान से पूजा-अर्चना, आरती आदि का दौर शुरू हो गया है। 14 सितंबर को शारदीय नवरात्र का समापन होगा। इस बार तिथि क्षय होने के कारण आठ दिन ही नवरात्र महोत्सव मनाया जाएगा। तृतीया तिथि एवं चतुर्थी शनिवार के दिन होने के कारण चतुर्थी तिथि का क्षय हो गया है। इसलिए मां चंद्रघंटा व मां कुष्मांडा की पूजा आराधना एक ही दिन शनिवार को होगी। वहीं इस बार माता रानी डोली में बैठकर आई हैं। महा अष्टमी 13 अक्टूबर को और महानवमी 14 अक्टूबर को मनाई जाएगी। दशहरा 15 अक्टूबर का रहेगा। नवरात्र के दिनों में गृह प्रवेश, वाहन खरीदी, सगाई, आभूषण खरीदी, प्रॉपर्टी आदि की खरीदी शुभकारी होती है।
घट स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:17 बजे से 7:07 बजे तक था, इसलिए सुबह से ही प्रतिमा बनाने वालाें के यहांं लाेगाें की भीड़ लगना शुरू हाे गए थे। जबकि कुछ लाेग बीती रात काे ही प्रतिमाएं लेकर आ गए थे, इसलिए चाैक चाैराहाें पर सुबह तड़के ही माता की प्रतिमाओं की स्थापना हाे गई। नवरात्रि में घटस्थापना अथवा कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। प्रतिपदा तिथि को शुभ मुहुर्त में पूरे विधि-विधान के साथ घट स्थापना की जाती है। सात अक्टूबर को घटस्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:17 बजे से 7:07 बजे तक था। दूसरा मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त सबसे उत्तम माना गया है, जो सुबह 11:41 बजे से दोपहर 12:28 बजे तक रहेगा। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश को तैयार करना होगा। सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। उसमे जवारे के बीज डाल दें। उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में डालकर थोड़ी जवारे और डालें फिर थोड़ा सा जल डालें। अब एक कलश लें, कलश और उस पात्र की गर्दन पर मौली बांध दें, तिलक भी लगाएं। इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें। इस जल में सुपारी, अक्षत और सिक्का भी दाल दें। अब इस कलश के किनारों पर 5 अशोक के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें। अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें। इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें। ये सब तैयार करने के बाद सबसे पहले पूर्व दिशा की ओर जमीन को पानी से अच्छे से साफ करके उस पर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर लाल चुनरी वाला नारियल रख दें। उसके पश्चात एक चौकी लें, उस पर लाल कपड़ा बिछा कर एक माता की तस्वीर रखें। उस पर दिया, धूपबत्ती, फल, फूल लगाकर माता की पूजा करें, इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत नवरात्र पूजन करें।