शरद पूर्णिमा पर हुए टेसू-झैंझी के विवाह

, महर्षि बाल्मीकि की जयंती पर हुआ अखण्ड रामायण पाठ
भिण्ड, 30 अक्टूबर। शारदीय पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) पर शुक्रवार को अंचलभर में शोसल डिस्टेंसिंग के साथ मनाया गया। आज महर्षि बाल्मीकि की जयंत पर बाल्मकी समाज द्वारा किला के पास पुरानी बस्ती में अखण्ड रामायण का पाठ भी कराया गया। वहीं शाम को शहरी एवं ग्रामीण अंचल में टेसू-झैंझी के विवाह भी हुए।
महर्षि बाल्मीकि जयंती पर सुबह अखण्ड रामायण पाठ और हवन पूजन के पश्चात महर्षि बाल्मीकि के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए एक गोष्ठी का आयोजन भी किया गया। मप्र राज्य सफाई कर्मचारी आयोग के पूर्व सदस्य सुनील बाल्मीकि ने बताया कि कोरोना संक्रमण कोविड-19 के कारण इस वर्ष चल समारोह शहर में नहीं निकाला गया। शासन ने बाल्मीकि जयंती पर अवकाश घोषित किया है। उनके आव्हान पर बाल्मीक समाज के लोगों अपने घरों में रहकर बाल्मीकि जयंती मनाई गई।
शरण पूर्णिमा के अवसर पर श्रद्धालुओं ने सुबह से ही अपने-अपने घरों में पूजा अर्चना की तथा शाम को खीर का प्रसाद वितरण किया गया। वहीं शहरी एवं ग्रामीण अंचल में कई स्थानों पर बच्चों के द्वारा टेसू झेंझी के विवाह का आयोजन भी किया गया।
लुप्त होने की कगार पर है टेसू-झैंझी विवाह की परंपरा
आज आधुनिक की दौड़ में टेसू झैंझी के विवाह की परंपरा लुप्त होने की कगार पर है। इस परंपरा को आज की युवा पीढ़ी भूलती जा रही है। अगर हम इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो पता चलता है कि किसी समय में इस प्रेम कहानी को परवान चढऩे से पहले ही मिटा दिया गया था। लेकिन उनके सच्चे प्रेम की उस तस्वीर की झलक आज भी यदाकदा देखने को मिल ही जाती है। शहर के लोग तो इसे लगभग पूरी तरह भूल ही चुके हैं। लेकिन गांवों में कुछ हद तक यह परंपरा अभी भी जीवित है। जहां आज भी टेसू-झेंझी का विवाह बच्चों व युवाओं द्वारा रीति-रिवाज व पूरे उत्साह के साथ कराया जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि अपनी प्राचीन परंपरा को सहेजने में गांव आज भी शहरों से कई गुना आगे हैं।
अड़ता रहा टेसू, नाचती रही झेंझी
टेसू गया टेसन से पानी पिया बेसन से…, नाच मेरी झिंझरिया… आदि गीतों को गाकर उछलती-कूदती बच्चों की टोली आपने जरूर देखी होगी। हाथों में पुतला और तेल का दीपक लिए यह टोली घर-घर जाकर चंदे के लिए पैसे मांगती है। कोई इन्हें अपने द्वार से खाली हाथ ही लौटा देता है, तो कहीं ये गाने गाकर लोगों का मनोरंजन करते हैं। मकसद सिर्फ एक होता है, चंदे के पैसे इकट्ठे कर टेसू-झेंझी के विवाह को धूमधाम से करना। वहीं छोटी-छोटी बालिकाएं भी अपने मोहल्ला-पड़ोस में झेंझी रानी को नचाकर बड़े-बुजुर्गों से पैसे ले लेती हैं। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में बच्चों की ये टोलियां बहुत ही कम दिखाई देती हैं।
ऐसे होता है विवाह
टेसू-झेंझी नामक यह खेल बच्चों द्वारा नवमी से पूर्णिमा तक खेला जाता है। इससे पहले 16 दिन तक बालिकाएं गोबर से चांद-तरैयां व सांझी माता बनाकर सांझी खेलती हैं। वहीं नवमी को सुअटा (नोरता) की प्रतिमा बनाकर टेसू-झेंझी के विवाह की तैयारियों में लग जाती हैं। पूर्णमासी की रात को टेसू-झेंझी का विवाह पूरे उत्साह के साथ बच्चों द्वारा किया जाता है। वहीं मोहल्ले की महिलाएं व बड़े-बुजुर्ग भी इस उत्सव में भाग लेते हैं। हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार लड़के थाली-चम्मच बजाकर टेसू का विवाह करते हैं। लेकिन अब पुराने रीति रिवाज लोग भूलते चले जा रहे हैं इसका असर मिट्टी के टेशू बनाने वाले कुम्हारों पर भी पड़ा है। उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले लोग बड़े ही धूमधाम से टेशू की मूर्ति ले जाकर बड़े उत्साह के साथ उसकी शादी करा देते थे लेकिन अब कोई टेसू खरीदने भी नहीं आ रहा, जिससे हमारे व्यापार पर काफी असर पड़ा है।