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बेस्ट सेलर बन गई भिंड में पैदा हुए आईएएस राजीव शर्मा की “विद्रोही सन्यासी”

बेस्ट सेलर बन गई भिंड में पैदा हुए आईएएस राजीव शर्मा की “विद्रोही सन्यासी”

बेस्ट सेलर बन गई भिंड में पैदा हुए आईएएस राजीव शर्मा की “विद्रोही सन्यासी”

“यह भारत कोई राष्ट्र मात्र नहीं है,यह मानवता की क्रीड़ा-स्थली है,यह पुण्यभूमि सदा सम्भावित, सशक्त और जाग्रत हो, यही हर युग के राष्ट्र प्रहरियों का कर्तव्य है।आप सब कुछ भूल जाना अपना व्यक्तित्व भी अथवा मुझे भी,किंतु इस कर्तव्य को मत भूलना।”

उपरोक्त गाध्यांश भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी(संप्रति-आयुक्त हथकरघा एवं MD मृगनयनी एमपोरियम म.प्र.शासन) श्री राजीव शर्मा कृत आदिशंकरचार्य के जीवन पर आधारित उपन्यास ‘विद्रोही सन्यासी’ से उद्धृत है।

पुस्तक का कवर पृष्ठ

एक बार में ही,प्रथम प्रष्ठ से अंतिम प्रष्ठ तक पाठक को यात्रा के लिये विवस करने की क्षमता से परिपूर्ण ‘विद्रोही सन्यासी’ प्राचीन एवं समकालीन भारत के मध्य एक सार्थक ‘सेतु-बंध’ का कार्य करता है।आदिशंकर न केवल भारतीय,अपितु संपूर्ण विश्व की मनीषा एवं बौद्धिक सामर्थ को आकर्षित तथा चुनौती देने बाली क्षमता का नाम है।जिस भाँति से श्री राजीव शर्मा ने आदिशंकर की विद्रोही मूर्ति को अपने शब्दों की छैनी से वर्तमान भारत के लिए प्रासंगिक एवं जीवंत कर दिखाया है,वह अनुपमेय है।
वस्तुतः समकालीन भारतीय साहित्य में पौराणिक पात्रों को जिस प्रकार से गढ़ कर प्रारंभिक पाठशालाओं से लेकर विश्वविध्यालयों तक प्रस्तुत कर,परोसा जा रहा है,वहाँ श्री राजीव शर्मा,गम्भीर लेखकीय दायित्व के साथ आदिआचार्य के कृततत्व एवं व्यक्ति को आज के संदर्भों में,(प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एवं अमेजन पर आते ही Best seller श्रेणी में स्थान प्राप्त)अपने उपन्यास के माध्यम से देश की युवाओं के लिये अभिनव संबोधन है।
उपन्यास में आदिशंकर द्वारा शताब्दियों पूर्व स्थापित देश में स्थापित चतुर्दिक पीठ स्थापना कर अखंड राष्ट्र में एकबद्ध करने का प्रयास हो,अति अल्पायु में,प्रतिकूल परिस्थितियों में उनके द्वारा की गईं चतुर्दिक बौद्धिक दिग्विजयी यात्रायें हों,या कि अपने काल खंड में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध उनका अदम्य एवं अड़िग संकल्प,वर्तमान जीवन के प्रत्येक आयामों में, आज भी वे विश्व के किसी भी श्रेष्ठ प्रबंधक से श्रेष्ठतम-श्रेष्ठ प्रबंधक गुरु हैं।मेरे मतानुसार यह उपन्यास,आदिशंकराचार्य को आधुनिक परप्रेक्ष्यों में अनूदित करने का अनुपम प्रयास है।यह कृति आज की तरुण पीढ़ी को दिक् भ्रम होने से बचा सकती है,वर्जनाओं और प्रतिबंधित-प्रतीत जीवन में नवीन मर्गों को प्रशस्त करने की सहज योग्यता रखती है।

समीक्षक- डॉ सोनिया सिंह अंग्रेज़ी विभाग केआरजी स्वशासी महाविद्यालय ग्वालियर

 

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