पितरों को भोजन कराने नहीं मिल रहे कौवे

ग्वालियर।
शहर से विगत कुछ सालों से कौवे गायब हो चुके हैं। लोग अपने पितरों को भोजन कराने के लिए घंटों तक छतों पर खड़े होकर कौवों को बुलाते हैं, लेकिन एक भी कौवे भोजन ग्रहण करने के लिए नहीं पहुंच रहा है। इसके चलते अब लोग शहर के बाहरी क्षेत्रों में कौवों को भोजन कराने के लिए पहुंच रहे हैं।
गरुण पुराण में बताया गया है कि श्राद्धपक्ष के दौरान पितरों को भोजन कराने से वह प्रसन्न होते हैं। पितरों को उनके स्वजनों द्वारा बनाए गए पकवान पहुंच सके इसके लिए कौवे, गाय और कुत्ते को भोजन कराना आवश्यक है, लेकिन विगत कुछ सालों से शहर से कौवे गायब हो चुके हैं। शहर से गायब हुए कौवों ने अब जंगली व बाहरी इलाकों में अपना डेरा बसा लिया है। इसके कारण शहर में अब कौवे नहीं दिख रहे हैं।
कौवे पीपल व बरगद के बीज सबसे अधिक खाते हैं। पेट में पहुंचकर बीज के ऊपर का गूदा व पचा लेते हैं। जबकि बीज को वह फर्टिलाइज कर फैला देते हैं। इससे बहुत जल्दी जंगल पनप जाता है। वहीं शहर से बड़े पेड़ गायब हो चुके हैं इसलिए उनकी संख्या पर असर पड़ा है। क्योंकि वे ऊंचे वृक्षों पर ही अंडे देते हैं। इसलिए सनातन संस्कृति में कौवों को संरक्षण प्रदान किय गया है।मादा कौवे जून- जुलाई में अंडे देते हैं। श्राद्धपक्ष से पूर्व इन अंडों से बच्चे निकल आते हैं। श्राद्धपक्ष में पौष्टिक भोजन मिलता है इससे कौवे के बच्चों को विकसित होने में बहुत मदद मिलती है।