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मुमताज़ जिन्होंने अपने नाम को किया सार्थक

मुमताज़ जिन्होंने अपने नाम को किया सार्थक

उनकी बोलती सी बड़ी बड़ी आंखें, अतीव सुंदरता, मोहक देहयष्टि और चुलबुली अदाएं दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करतीं थीं. 1970 के दशक में उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री पर तकरीबन एकछत्र राज किया. 73 वर्षीय मुमताज इन दिनों फिल्मों की चकाचोंध से दूर लंदन में रह रही हैं. उनके पति मयूर वाधवानी एक बड़े बिजनेसमेन हैं. उनकी बड़ी बेटी नताशा की शादी अभिनेता फिरोजखान के पुत्र फरदीन खान के साथ हुई ।

एलवी प्रसाद प्राॅडक्संस की 1970 में आई फिल्म ‘‘खिलोना’’ मुमताज के फिल्मी करियर में मील का पत्थर साबित हुई. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर बैस्ट एक्ट्रेस अवार्ड मिला. गुलशन नंदा के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में मुमताज ने एक वैश्या चांद का किरदार निभाया था. ‘सनम तू बेवफा के नाम से’, ‘खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी..’, ‘खिलोना जानकर तुम तो मेरा दिल तोड़ जाते हो’ तथा ‘मैं शराबी नहीं…’ इस फिल्म के सदाबहार गीत हैं. इस फिल्म में मुमताज ने बेहद भावप्रवण अभिनय किया तथा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गईं. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर का बैस्ट एक्ट्रेस अवार्ड मिला. गुलशन नंदा को बेस्ट स्टोरी राइटर, जगदीप को बैस्ट कौमेडीयन के अवार्ड भी इसी फिल्म के लिए दिए गए.

मुमताज ने कुल 109 फिल्मों में काम किया. 1990 में अंतिम बार वह आंधियां फिल्म में नजर आईं. राजेश खन्ना के साथ उनकी जोड़ी सबसे ज्यादा जमी जिसने सर्वाधिक हिट फिल्में दीं. पर उन्होंने दारासिंह के साथ भी 16 फिल्में कीं जिसमें से 10 हिट रहीं. दो रास्ते, अपना देश, प्रेम कहानी, दुश्मन, बंधन, आपकी कसम, खिलोना, लोफर, रोटी, सच्चा झूठा ने मुमताज कोेेे काफी ऊंचाइयों पर पहुंचाया. खिलोना, मेला, अपराध, नागिन, ब्रह्मचारी, गहरा दाग, हमराज, राम और श्याम को भी उनकी लोकप्रिय फिल्मों में शुमार किया जाता है. 1996 मेें फिल्मफेयर ने उन्हें लाइफटाइम एचीवमेन्ट अवार्ड भी दिया.

टाइम्स आफ इण्डिया के लिए सुभाष झा को अपने जन्मदिन पर 2012 में दिए गए एक इंटरव्यू में मुमताज ने कहा था कि अगर आपमें प्रतिभा है तो फिल्म इंडस्ट्री आपको पूछेगी ही पूछेगी. शिकायतेें वही लोग करते हैं जिनमें प्रतिभा की कमी होती है. मुमताज ने स्वीकारा कि अगर आपके पास पैसा नहीं है तो समाज में आपको कोई नहीं पूछेगा. इसीलिए मैं युवाओं से कहती हूं कि अपनी जिंदगी में कुछ करो, कुछ बनो. अगर मैं मुमताज नहीं होती तो शायद मयूर ने मुझे शादी के लिए प्रपोज ही नहीं किया होता. मुमताज को, खिलोना, तेरे मेरे सपने, आइना, आपकी कसम, झील के उस पार और कुछ अन्य फिल्मों में की गई अपनी भूमिकाएं सबसे ज्यादा पसंद हैं. खिलोना को वह अपने फिल्मी करियर का टर्निंग पाइंट मानती हैं. वह कहती हैं. सीता और गीता फिल्म पहले उनको आॅफर की गई थी, पर मेेहनताना अत्यंत कम होने के कारण उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था, बाद में इसे हेमा मालिनी ने किया और उन्हें इस फिल्म के लिए फिल्म फेयर अवार्ड मिला. हालांकि खिलोना में मुमताज यह अवार्ड पहले ही प्राप्त कर चुकी थीं. मुमताज ने एक और किस्सा सुनाते हुए बताया था कि वी शांताराम जी ने उन्हें अपनी फिल्म “बूंद जो बन गई मोती” में लीड एक्ट्रेस के रूप में चुना तो इसमें हीरो की भूमिका निभा रहे तब के सुपरस्टार जितेन्द्र ने मुमताज के साथ काम करने से मना कर दिया. शांतारामजी ने जितेन्द्र से कहा था कि इस फिल्म की हीरोइन तो मुमताज ही रहेंगी. आप फिल्म छोड़ सकते हैं. मैं दूसरा हीरो ले लूंगा.

राजेश खन्ना मुमताज को बहुत पसंद करते थे, यही वजह थी कि 1974 में जब मुमताज ने मयूर वाधवानी से शादी की तो उनका दिल टूट गया. क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि मुमताज शादी करें. शशिकपूर को हमेशा मुमताज के साथ काम न कर पाने का मलाल रहा. 2000 में मुमताज केंसर का शिकार हो गईं, पर अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर उससे उबर गईं और आज स्वस्थ हैं. वह अपनी पिछली जिंदगी से पूरी तरह संतुष्ट हैं. वह कहती हैं कि अगर उन्हें दोबारा जन्म मिला तो वे मुमताज ही फिर बनना चाहेंगी.

@रामानंद सोनी*

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