कमल की ताजपोशी :कैसे निस्तेज हुए विरोध और विद्रोह के शोले
May 24, 2020

– देव श्रीमाली –
ग्वालियर। पीछे पखबाड़े में जब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा ने ग्वालियर महानगर अध्यक्ष के पद पर कमल माखीजानी की ताजपोशी की तो ग्वालियर भाजपा की सामान्यतौर पर शांत रहने वाली संगठन की प्याली में उबाल आ गया था। कई बड़े नेताओं ने लॉक डाउन के बावजूद बैठक की वहां अपने शीर्ष नेतृत्व को गरियाया और फिर बाकायदा एक चिट्ठी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्ढा को लिखी इसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार और भाई – भतीजावाद तक आरोप लगाए गए। लगा मानो भाजपा में कोई न कोई बड़ा विस्फोट होगा लेकिन ये दहकते शोले अचानक फुस्स हो गए। अब सियासी विश्लेषक इस घटनाक्रम की बजह तलाशते घूम रहे है।
कौन है माखीजानी
मूलत:कला क्षेत्र से आने वाले कमल माखीजानी ने पेंटिंग की शिक्षा हासिल की और इसके लिए वे देश के सुप्रसिध्द संस्थान जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़े और भारत भवन जैसी संस्था से जुड़े इसके बाद वे भाजपा के संपर्क में आये और छात्र जीवन से ही भाजयुमो और भाजपा में काम करने लगे। वे इसमें अनेक पदों पर भी रहे और सिंधी समाज के राष्ट्रीय संगठन के महामंत्री भी रहे। विगत कुछ वर्षो में उन्होंने सिंधी युवाओं को बड़ी संख्या में भाजपा से जोड़ा तो वे पार्टी के नेताओं की निगाहों में आये।
लम्बे समय से हो रही थी मांग
ग्वालियर में सिंधी समाज काफी संख्या में रहता है और यह दशकों से जनसंघ और भाजपा का समर्थक भी है। इस समाज के लोग ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से हर बार अपनी दावेदारी भी पेश करते है लेकिन टिकिट कभी नहीं मिला। भाजपा ने एक सिंधी श्रीचंद्र जैसवानी (अब दिवंगत ) को एक बार ग्वालियर नगर निगम का डिप्टी मेयर जरूर बनाया लेकिन इससे बड़े सत्ता और संगठन के पद पर कभी नहीं बैठाया गया। पहला मौका है जब सिंधी समाज का कोई व्यक्ति किसी भी राष्ट्रीय दल का जिला अध्यक्ष बना हो।
कैसे बिछी बिसात ?
कमल माखीजानी भारतीय जनता पार्टी में संगठन के व्यक्ति माने जाते हैं। उन्हें सबसे पहले तत्कालीन जिला अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा ने महामंत्री बनाया था तब से वे पार्टी संगठन पद पर जुड़े हुए हैं। उन्हें सांसद शेजवलकर का नजदीकी माना जाता है। पिछली दफा जब जिला अध्यक्ष का चुनाव हो रहा था तब भी कमल माखीजानी का नाम चर्चा में था। उस समय यहाँ के सांसद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर थे और उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए उनके नजदीकी देवेश शर्मा की ताजपोशी हो गयी थी। कहा जाता है तब श्री तोमर ने स्वयं श्री माखीजानी से “इस बार मान जाने ” और अगली बार देख लेने ” को कहा था ,यही बजह थी कि इस बार संगठन चुनावों की प्रक्रिया शुरू होते ही कमल का नाम चर्चा में था।
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लेकिन इस नाम को पंख लगने की कुछ और बजहें भी थी। सबसे बड़ी बजह थी इस बार यहाँ से नरेंद्र तोमर की जगह विवेक शेजवलकर का सांसद होना। बावजूद इसके तोमर के नजदीकी माने जाने वाले जय सिंह कुशवाह ,वेद प्रकाश शिवहरे ,देवेश शर्मा,सोनू मंगल, रामेश्वर भदौरिया सहित कुछ लोग ऐसे थे जो कमल के पक्ष में नहीं थे। हालाँकि स्वयं तोमर ने इस मामले में चुप्पी साध रखी थी लेकिन कुछ महीने पहले जब भाजपा ने अपने जिला अध्यक्षों के नामो की सूची जारी की तो उसमे ग्वालियर शहर और देहात दोनों गायब थे। जबकि संभाग के बाकी जिला अध्यक्षों की घोषणा हो गयी थी। संकेत साफ़ था – मामला फंसा हुआ है।
बदल गई परिस्थितियां
कहते हैं है सियासत में परिस्थितियां भी भाग्य की तरह ही काम करतीं है और कमल माखीजानी के मामले में भी यही हुआ। विधानसभा चुनावों में भाजपा को अपने गढ़ कहे जाने वाले ग्वालियर जिले में करारी हार मिली। शहर की तीन में से एक भी सीट भाजपा नहीं जीत सकी और समीक्षा में इसकी बजह संगठन का समन्वय ठीक न होना माना गया। दूसरी बजह नरेंद्र तोमर के ख़ास राकेश सिंह की अध्यक्ष पद से विदाई भी हो गयी। नए अध्यक्ष बने बीडी शर्मा जिन्हे तोमर का समर्थक नहीं माना जाता।
कौन हैं बीडी शर्मा ?
बीडी शर्मा मूलत: मुरैना जिले से के रहने वाले हैं जहाँ से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सांसद हैं। जातिवाद के लिए कुख्यात या विख्यात चम्बल अंचल में यह बताना भी जरूरी है कि श्री शर्मा ब्राह्मण है और श्री तोमर क्षत्रीय। बचपन से ही आरएसएस से जुड़े और विद्यार्थी परिषद् के जरिये प्रदेश में अपनी जड़ें जमाने श्री शर्मा को समर्थक ” बीडी भाई साहब ” ही पुकारा जाता है। उनकी संघ और भाजपा में कितनी गहरी पैठ है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुरैना जिले के निवासी होने के बावजूद भोपाल के गोविन्दपुरा विधानसभा सीट से उनको टिकिट देने की बात हो रही थी और मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के जबरदस्त विरोध के कारण जब संभव नहीं हुआ तो संघ ने उन्हें खजुराहो लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया और उन्होंने शानदार और रिकॉर्ड जीत हासिल की। इसके बाद संघ के इशारे पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर उनकी ताजपोशी कर दी गयी। श्री शर्मा की ताजपोशी भी माखीजानी के लिए वरदान बन गयी क्योंकि उनसे भी इनके सम्बन्ध अच्छे थे। सांसद के बाद प्रदेश अध्यक्ष का साथ मिलने से उनकी सम्भावनाये बढ़ गई। इसके बाद संगठन मंत्री ने सभी नेताओं से बातचीत की और कमल माखीजानी को शहर और डॉ नरोत्तम मिश्रा के ख़ास कौशल शर्मा को ग्रामीण अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी। जैसा कि संभावित था दोनों में से एक भी पद न मिलने से तोमर समर्थक उबाल पड़े।
पहले आरोप फिर माफ़ी
इस नियुक्ति के खिलाफ एक बैठक हुई। कहा जाता है कि यह बैठक समर्थक जिन दो नेताओं ने आहूत की आमंत्रण देने के बाद आखिरी समय में वे खुद बैठक में नहीं पहुंचे ताकि सरकार में बंटने वाले संभावित पदों की दौड़ से वे बाहर न हो जाएं। बैठक में संगठन मंत्री सुहास भगत पर भ्रष्टाचार और रिश्तेदारी निभाने के आरोप लगाए गए। बात यहीं तक नहीं थमी इसमें प्रदेश अध्यक्ष श्री शर्मा को भी निशाने पर लेते हुए उन पर नियुक्तियों में मनमानी करने का भी आरोप लगाया गया। इसका आरोप पत्र भी तैयार हुआ और उसे श्री नड्ढा को भजने की बात भी कही गयी और इसे मीडिया में बायरल भी किया गया।
तोमर की चुप्पी और विरोधियों की एकजुटता
इस घटनाक्रम से लगा था मानो कोई अनुशासित दल में कोई भूचाल आ जाएगा लेकिन दूसरे ही दिन बैठक में मौजूद लोगों में से छह दस्तखतों वाला एक माफीनामा भाजपा के प्रदेश मीडिया विभाग ने जारी किया। इसके पीछे बताते है कि केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने इस प्रसंग से अपने को अलग कर लिया। इससे विरोधियों की मार कमजोर पड़ने लगी उधर एक – एक कर सभी तोमर विरोधी खुलकर संगठन के निर्णय के पक्ष में आने लगे।
सबसे पहले फायरब्रांड नेता जयभान सिंह पवैया मैदान में आये। उन्होंने संगठन के आला नेताओं को फोन लगाकर निर्णय को न केवल सही ठहराया बल्कि विरोध करने वालो के खिलाफ कार्यवाही की भी मांग की। पूर्व मंत्री नारायण सिंह भी माखीजानी के समर्थन में आ गए। कद्दावर नेता और मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा और पूर्व जिला अध्यक्ष वेदप्रकाश शर्मा ने भी समर्थन किया। इसके बाद ग्वालियर आये संभागीय संगठन मंत्री श्री तिवारी से लगभग पांच सौ प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं ने भेंट कर निर्णय को सही ठहराया। इनमे भाजपा के सभी पूर्व जिला अध्यक्ष शामिल थे हालाँकि श्री तोमर समर्थक पूर्व जिला अध्यक्ष अभय चौधरी और देवेश शर्मा इसमें शामिल नहीं थे लेकिन वे विरोध जताने भी नहीं गए।
इस तरह पांसा पलट गया। सूत्रों की माने तो पहले संगठन ने विरोध करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने की तैयारी भी कर ली थी लेकिन माफीनामे के बाद उन्होंने अपनी रणनीति बदल दी। अब वह कार्यवाही भी नहीं करेंगे और बर्फ का इस्तेमाल भी करेंगे। बहरहाल अभी यह देखना बाकी है असंतुष्टों का अगला कदम क्या होता है क्योंकि आगामी कुछ ही महीनो में विधानसभा के उप चुनाव होने वाले हैं।