-देव श्रीमाली-
शनिवार को दोपहर अचानक मेरे वॉटशेप्प पर एक मैसेज आया । यह मैसेज बहुत कारुणिक था । मेसेज भेजने वाले मेरे शिवपुरी में पत्रकार मित्र ध्रुव उपमन्यु थे । उन्होंने लिखा था ग्वालियर के नारायण विहार कॉलोनी में एक परिवार दो दिन से भूखा है । उसकी गर्भवती पत्नी । वह जिस होटल पर नौकरी करता है उसके मालिक ने मोबाइल ऑफ कर लिया है । क्या इनकी कोई मदद हो सकती है?
मैं किंकर्तव्य विमूढ़ हो गया । अचानक याद आया युवा रामराज राजावत का नाम जो बीते एक पखबाड़े से कांग्रेस नेता अशोक सिंह के सहयोग से जरूरतमंदों को एक हजार खाने के पैकेट रोज बांट रहे है । तीर निशाने पर लगा ।उन्हें मेसेज किया । पता और जरूरतमंद का नम्बर दिया । दस मिनिट बाद ध्रुव का मैसेज आया धन्यवाद भाई साहब । काम हो गया । संतोष मिला।
मैने यही मेसेज अपने भाजपा के मित्र कमल माखीजानी को भेजा क्योंकि जरूरतमंद सिंधी समाज का था । मेने उनसे अनुरोध किया वे समाज के लोगो से कहकर इसके आगे का प्रबन्ध कराए । खुशी की बात उन्होंने तत्काल लोगों को भेजा और उसके घर एक पखवाड़े के लिए राशन भिजवाया ।
ये दो लोग अकेले नही है । अनेको राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिदिन हजारों लोगों को भोजन और जानवरों को चारा मुहैया करा रहे है । दाताबन्दी छोड़ गुरुद्वारे के लंगर और जीवाजी क्लब से भी हजारो को भोजन बनाकर जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा रहा है लेकिन यह समाज के वे हिस्से है जिनकी छवि समाज के लिए ऐसे कामो के लिए पहले से ही जानी जाती है लेकिन अगर हम पुलिस की बात करे तो सामान्यतौर पर लोगों के जेहन में उसकी ऐसी धबल छवि नही होती है लेकिन कोरोना की इस विश्वव्यापी समस्या में पुलिस की वर्दी के दाग ही नही हट रहे बल्कि सोशल पुलिसिंग का एक धवल पक्ष नज़र आ रहा है ।
रविवार । ग्यारह बजे । मेरे वॉटशेप्प पर एक अनसेव नंबर से मेसेज आया – भाई साहब उरबाई गेट पर मज़दूरों के बीस परिवार कल से भूखे है ।मैं चल नही सकता । क्या इनकी कोई मदद हो सकती है । मैंने कुछ नम्बर दिए । उन्होंने उन पर बात की तो जबाव मिला दो घंटे में भोजन पहुंच सकेगा। उस शख्स ने मुझे फिर मेसेज भेजा – लिखा छोटे बच्चे भूख से बिलख रहे हैं। दो घंटे…..?
मेरी आँखें भर आईं । इतनी जल्दी मैं घर से बनवाकर भी नही भेज सकता था । मैंने कहा – आप मेरा नाम लैकर एसपी नवनीत भसीन साहब से बोलो । मैंने उनका नम्बर भी भेजा ।
सिर्फ आधा घण्टे बाद उसी नम्बर से वॉटशेप्प पर आभार संदेश आया । भाई साहब काम हो गया । एसपी साहब ने तत्काल व्यवस्था करवा दी। वे बहुत अच्छे आदमी हैं । दरअसल यह आभार उन्ही के लिए पोस्ट किया गया था ।मैं सिर्फ डाकिये की भूमिका में था । मैंने श्री भसीन को फोन पर आभार जताने की जगह इनके कृत्य में इस आपदा में पुलिस की बदलती सूरत और शीरत तलाशने की सोची ।
दरअसल इस दौरान देश ,प्रदेश के साथ ग्वालियर की पुलिस बीते बीस दिनों से विषम परिस्थितियों में और एक नए टास्क के साथ अपने काम को अंजाम दे रही है । इसमें पुलिस का रुख प्रारम्भ से ही मानवीय रहा । डंडा और दुत्कार वाली पुलिस के लोगों ने पहले निजी स्तर पर लोगो को अपने घर से लाकर खाना खिलाने के काम शुरू किया । पड़ाव थाने के टीआई के बारे में मुझे शुरू में किसी ने बताया था कि वे घर से खाना लेकर आ रहे है और लॉक डाउन में फंसकर भुखमरी में फंसे भिखारियो को बांटते है । उनका अनुसरण अनेक आरक्षकों ने किया ।
दूसरा उदाहरण तब मिला जब देशभर से पलायन कर मजदूर और कामकाजी पैदल ही हजारो की संख्या में दिल्ली आदि से निकल पड़े थे । शुरू में पुलिस और प्रशासन से उन्हें अवरोध और डंडे भी मिले । लेकिन ऐसे अनेक लोग डबरा में भी फंसे थे जो फसलो की कटाई करने आये थे और फंस गए । डबरा के तहसीलदार और टीआई ने इनके लिए खाने की व्यवस्था की । वाहनों से इनको भिजवाया ।
धीरे धीरे यह बात अफसरों तक पहुंची । उन्होंने जिसमे कलेक्टर कौशलेंद्र सिंह और एसपी नवनीत भसीन शामिल थे ,ने इस मानवीय कार्य को व्यवस्थित करने का निर्णय लिया और जरूरतमंदों तक भोजन पहुँचाने का काम भी जोड़ा ।
भूखे रहने की स्थिति में विश्वविद्यालय थाने में पदस्थ एस आई सुश्री प्रतिभा श्रीवास्तव ने लगातार सुबह और शाम को लगभग पैकेट प्रतिदिन कलेक्ट्रेट , विश्वविद्यालय थाने के आसपास ग्वालियर के इलाके में तीन न सौ पैकेट और जिला प्रशासन, पुलिस अधीक्षक नवनीत भासीन, एडीशनल एसपी, थानाप्रभारी के अनुरोध पर बताये गये इलाकों में 300 पैकेट अपनी टीम के साथ पैकेट बांट रही हैं। सुश्री प्रतिभा श्रीवास्तव बताया था थाना क्षेत्र के सीमावर्ती इलाके में बाहर के जिले से मजदूरी करने के लिए शहर ग्वालियर में आते थे लोकडाउन की बाजह से आपने घरों को नहीं जा पाते और यह पर जो हर रोज मेहनत मजदूरी कर अपना परिवार का पेट भर रहे थे ऐसे लोगों को पुलिस टीम खाना बांटने काम कर रही है और लोगों को समझने का भी काम रही है कि बुखार ज़ुकाम गले में खराश खांसी हो तो डाक्टर को दिखाऐ । गरीब परिवार के लिऐ खाने के लिये लाते हैं लाकडाउन की बजाए से झुग्गियों में रह रहे हैं ऐसे लोगों को पुलिस की टीमें खाना बांट रही है जिससे कोई मजदूर गरीब बेसहारा लोग भूखे पेट नहीं सोये। जह हमारे थाना क्षेत्र में पुलिस के लोग लगे हुए हैं और जव तक लागे रहेंगे जव लाकडाउन नहीं खुलता और लोग मजदूर मजदूरी करने नहीं जाता।
निसंदेह यह पुनीत अभियान पुलिस की छवि को बरसों तक नयी पहचान के साथ स्मरण कराटे रहेगा जो एडीजीपी राजबाबू सिंह जैसे संवेदनशील अफसर और कौशलेन्द्र सिंह जैसे कलेकटर और नवनीत भसीन जैसे संवेदना और मानवीयता पुलिस अधीक्षक के बीच मानवता के समन्वय नतीज़ा ही है।