सेन्ट्रल जेल से 22 बंदियों को गणतंत्र दिवस पर रिहा किया गया , 18 से 19 साल जेल में बिताने के बाद बंदी बाहर आए

ग्वालियर में बुधवार सुबह सेन्ट्रल जेल के बाहर का दृश्य किसी को भी रुला सकता था। जेल से 22 बंदियों को गणतंत्र दिवस पर रिहा किया गया था। 18 से 19 साल जेल में बिताने के बाद जब यह बंदी बाहर आए तो उनको लेने के लिए किसी का बेटा तो किसी की पत्नी और किसी क नाती-पोते आए थे।
जब यह बंदी जेल गए थे तो बच्चे छोटे थे आज बच्चों की गोद में उनके बच्चे उन्हें घर ले जाने आए थे। यह वह पल था जब बंदियों और उनके परिजन की आंखें आंसुओं से भर आईं। वहां मौजूद पुलिस अफसर भी अपनी आखों से आंसू नहीं रोक पाए। इस मौके पर बंदियों का कहना था कि पूरी जिंदगी उन्होंने एक गलती के लिए खराब कर दी। अब यह उनकी दूसरी जिंदगी है और इसे मानवता के विकास के लिए लगाएंगे।
जेल प्रबंधन ने बंदियों को रिहा करने से पहले जेल में शॉल श्रीफल दिया। कार्यक्रम में जेल अफसरों के साथ ही सामाजिक संस्थाओं के सदस्य तथा अन्य बंदी मौजूद थे। यहां पर जेल अधीक्षक मनोज साहू ने बंदियों को आगामी जीवन के लिए बधाई दी। जैसे ही बंदियों ने जेल की चारदीवारी से बाहर कदम रखा, तो सुबह से इंतजार में बैठे उनके परिजनों ने उन्हें बांहों में भर लिया और उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।
गुस्सा सोचने समझते की शक्ति खत्म कर देता है
जेल मेें 17 साल की सजा भुगतने के बाद अच्छे चाल-चलन के चलते रिहा हुए बंदी डब्बू उर्फ राजेश ने बताया कि गुस्से पर काबू रखते तो उनके जीवन के 17 साल बच जाते, गुस्से की वजह से जेल में सजा के तौर पर निकला वक्त वापस नहीं आ सकता है। अगर वे गुस्से पर काबू रखते तो परिवार से दूर नहीं रहना पड़ता। जब जेल गए थे तो बच्चे छोटे थे पर अब बच्चों के बच्चे हो गए हैं। परिवार के साथ समय बिताऊंगा। जो समय खोया है वह नहीं मिल सकता है, लेकिन जितना बचा है उसका पूरा आनंद लूंगा।
…तो बच जाते 14 साल
जेल से सजा काटकर बाहर आए बंदी मन्ना उर्फ मुन्ना का कहना है कि हत्या के मामले में उन्होंने सजा काटी है। अपनी जिंदगी के 14 साल जेल में बिताने पड़े और परिवार से दूर रहे। अफसोस है, कि आवेश में आकर हत्या की और अपने जीवन के कीमती 14 साल जेल में बिता दिए। अगर गुस्से पर काबू रखते तो यह चौदह साल बच जाते।