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लुप्तप्राय हो रही है, महाभारत काल से चली आ रही टेसू झेंझी की परम्परा

लुप्तप्राय हो रही है, महाभारत काल से चली आ रही टेसू झेंझी की परम्परा

 

*जबतक टेसू का विवाह नहीं होता तब तक नहीं होते हैं नवयुवकों के विवाह*

भिंड।

टेसू झेंझी विवाह की परम्परा महाभारत काल से चली आ रही है लेकिन आधुनिक युग में अब यह अब धीरे धीरे विलुप्त हो रही है।
हिंदू धर्म में टेसू और झेंझी के विवाद के बाद समाज मे शादी विवाह के कार्यक्रम शुरू होने की मान्यता है, इसका अस्तित्व महाभारत काल से चला आ रहा है लेकिन आज के समय में धीरे धीरे ये परंपरा विलुप्त होती जा रही है। जबकि सदियों पुराने इस रिवाज के अनुसार विजय दशमी के बाद टेसू झेंझी विवाह शरद पूर्णिमा की रात को सम्पन्न कराया जाता है। महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। पूरे गांव में जश्न का माहौल होता है। बच्चे टेसू व झेंझी के साथ टेसू मेरा यही खड़ा एवं मेरी झेंझी का रच्यो है, विवाह के गीत गाते है लेकिन आज ये गीत बहुत कम ही सुनाई पड़ते हैं।

*अभी भी कुछ गांव में जीवंत है परंपरा*
पहले दशहरे के मेले में सजी दुकानों से लोग टेसू झेंझी खरीदकर लाते थे और गली मोहल्लों में बच्चों की आवाजों में टेसू व झेंझी के गीत सुनाई देने लगते थे लेकिन मौजूदा दौर में टेसू झेंझी के विवाह की परंपरा विलुप्त होती जा रही है। देखा जाए तो शहरी क्षेत्रों में तो इन गीतों की गूंज पूरी तरह बंद हो गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी परंपरा मंद पड़ती जा रही है। अब चुनिंदा गांवों में ही इस परंपरा का निर्वहन हो रहा है। किशोर व किशोरियां की टोलियां टेसू झुंझियां के साथ गांवों की गलियों में शाम ढलते ही निकल पड़ते थे। घर घर जाकर यह टोलियां मेरी झुंझियां का रच्यो है ब्याह, टेसू आये टेशन से, टेसू अटर करें, टेसू मटर करैं, टेसू लहीं कै टरें के गीतों को सुनाकर शरद पूर्णिमा को होने वाले टेसू झुंझियां के विवाह के लिए धन संग्रह का काम शुरू हो जाता था लेकिन इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग यह परंपरा भूलते जा रहे हैं। हालांकि भिण्ड देहात के सैकड़ो गांव में अभी भी इस परंपरा को किशोर जीवित किए हैं।

*महाभारत से शुरू हुई परंपरा*
टेसू व झेंझी की परंपरा महाभारत कालीन है। इसके अनुसार भीम के पुत्र घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक महाबलशाली योद्धा था। उस समय महाभारत का युद्ध चल रहा था। युद्ध देखने के लिए आते समय राक्षस पुत्री झेंझी से उसे प्रेम हो गया। इस पर झेंझी ने जब विवाह के लिए कहा तो उसने युद्ध के बाद वापस आने पर विवाह करने का वचन दे दिया। यहां आने के बाद मां को दिया वचन निभाने के लिए उसने पराजित होने वाले पक्ष का साथ देकर युद्ध करने की घोषणा कर दी। इस पर भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया था। तब से टेसू झेंझी के विवाह की परंपरा चल रही है। जिसे लोग निभा रहे हैं। इस विवाह के बाद ही सहालग की शुरुवात होती है।

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