दतिया महाराज का निधन और दस पीढ़ियों से चल रहे हिन्दू – मुस्लिम भाई चारे की रोमांचक कहानी

साम्प्रदायिक सौहार्द की मिशाल दतिया राज परिवार और करैरा रियासत के सैयद सालार परिवार 10 पीढ़ियों से एक परिवार की तरह मना रहे सौर सूतक
पूर्वजों द्वारा लिए संकल्प पर आड़े नहीं आ सका धर्म मजहब
दतिया। अलग-अलग हिंदू-मुस्लिम धर्म के अनुयायी होने के एक कुटुंब परिवार की तरह रिस्ते निभाकर एक दूसरे के रस्मों रिबाजों में 10 पीढ़ियों से शरीक होकर देश में साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश कर रहा मप्र के बुन्देलखण्ड की बुन्देला रियासत का दतिया राज परिवार।
दरअसल दतिया के बुन्देला राज परिवार और करैरा रियासत के सैयद सालार परिवार के बीच करीब 270 साल यानि 10 पीढ़ियों से एक कुटुबं या परिवार की तरह रिश्ता है। मांगलिक कार्यक्रमों के साथ ही दोनों परिवार सौर, सूतक तक मानते हैं
दोनों में से किसी परिवार में सौर सूतक हो जाए तो दोनों परिवारों के सदस्य रस्मों में शामिल होते हैं। इसके पीछे दिलचस्प व प्रेरक ऐतिहासिक कहानी हैं। बात उन दिनों की हैं जब दिल्ली में मुगलों की सत्ता थी। साल 1750 ई. में दतिया राजा राव इंद्रजीत और करैरा रियासत के मुगल फ़ौजदार सैयद सालार असगर अली के बीच आत्मीय मित्रता थी। मुगलों की दक्षिण विजय अभियान के लिए जाने वाली सैन्य टुकड़ियों को करेरा के दुर्गम पहाड़ी व जंगली इलाके से सुरक्षित निकालने का जिम्मा मुगलों ने सैयद सालार असगर अली को सौंप रखा था। दिल्ली में मुगलों के कमजोर होते ही करैरा को सैयद सालार ने स्वतंत्र रियासत घोषित कर दिया। वहीं मराठों ने करैरा के इलाकों पर हमले शुरू किए, कई बार मराठों को सैयद सालार की फौजों ने मार भगाया। झांसी के मराठा सरदार नारूशंकर ने करैरा रियासत पर आक्रमण किए पर वह करैरा को जीत नहीं सका। सैन्य अभियान की तैयारियों के दौरान हुए एक हादसे में सैयद सालार असगर अली के 12 में से 10 भाई मारे गए। इस घटना से विचलित होकर सैयद सालार का जीवित भाई करैरा छोड़ मुजफ्फरनगर चला गया। सैयद सालार सैन्य बल में कमजोर हो जाने के मराठों से जंग लड़ने में समर्थ नही रहे, वह करैरा को मराठों के सुपुर्द भी नहीं करना चाहते थे। निराशा से घिरे सैयद सालार ने अपने मित्र राजा इंद्रजीत को करैरा बुलाकर करैरा रियासत को मराठों को सौंपने की बजाए दतिया राज्य में विलीन कर लेने का प्रस्ताव रखा जिसे राजा इंद्रजीत ने स्वीकार कर लिया और सैयद सालार असगर अली को दतिया ले आए। हालांकि करैरा रियासत ज्यादा समय तक दतिया रियासत के साथ नहीं रह सका मराठों ने दतिया पर हमले शुरू किए तो राजा ने करैरा मराठों को दे दिया और सैयद सालार से कहा आज से दतिया राज्य पर आपका बराबर का अधिकार हैं, आप मेरे परिवार के सदस्य की तरह रहेंगे यह भाईबंदी आने वाली नस्लों तक जारी रहेगी। सैयद सालार अविवाहित थे, राजा इंद्रजीत ने
सैयद सालार का वंश चलाने के लिए उनका विवाह कराया तथा बिंनायिकी में आगे आगे चले। तब से दोनों परिवारों के बीच एक कुटुंब की तरह रिस्ते कायम हैं। सैयद सालार असगर अली के वंशज दतिया में आज भी करैरा वालों के नाम से जाने जाते हैं। दतिया राज परिवार और करैरा के सैयद सालार परिवार के बीच 10 पीढ़ियों से चली आ रही भाईबंदी आज भी जीवंत है।
महाराजा राजेन्द्र सिंह जूदेव के निधन पर सैयद परिवार ने मनाया सूतक-
15 अप्रेल को दतिया रियासत के महाराजा राजेन्द्र सिंहजूदेव का असमय निधन हो गया था। राज परिवार में शोक होने पर सैयद सालार परिवार में भी सूतक मनाया गया। 25 अप्रेल को महाराजा अरुणादित्य जूदेव द्वारा किए गए शुद्धता आदि कर्मकांड में दतिया राज परिवार के संरक्षक महाराज घनश्याम सिंहजूदेव, राज परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सैयद परिवार के मुर्तजा अली जैदी ने अपना मुंडन भी कराया।
इनका कहना हैं-
दतिया के राजा इंद्रजीत की करैरा के सैयद सालार असगर अली से आत्मीयता थी, मराठों के आक्रमणों से परेशान सैयद सालार के प्रस्ताव को स्वीकार कर राजा इंद्रजीत ने करैरा का राज्य दतिया में विलीन कर लिया था। सैयद सालार असगर अली को राजा इंद्रजीत ने अपने परिवार का सदस्य माना था। तब से दोनों परिवार सौर सूतक सहित सभी रीति रिवाज मानते आ रहे हैं, यह परंपरा आज भी कायम हैं-
महाराज
घनश्याम सिंह, विधायक सेंवढ़ा
करैरा रियासत के सैयद सालार परिवार व दतिया राज परिवार के बीच 10 पीढ़ियों से एक कुटुंब परिवार की तरह रिस्ते हैं। राजा इंद्रजीत के समय से दोनों परिवारों के सुख दुःख, सौर सूतक प्रचलित रीति रिबाज के अनुसार हम लोग मानते आ रहे हैं
इतरत अली जैदी, एडवोकेट
सदस्य, सैयद सालार परिवार
दतिया रियासत के महाराजा राजेंद्र सिंहजूदेव के निधन के पश्चात 25 अप्रेल को शुद्धता कर्मकांड में मैंने मुंडन कराया है, दतिया राज परिवार और मेरे सैयद सालार परिवार के बीच एक कुटुंब परिवार की तरह रिश्ता हैं, जो कई पीढ़ियों से चला आ रहा हैं।