एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर ने किया मप्र की सियासी घटना की कुटिलताओं का शानदार विश्लेषण
मध्य प्रदेश का संवैधानिक प्रहसन ( पाखंड)
एन के त्रिपाठी
मध्य प्रदेश में विगत कुछ समय से ही श्री सिंधिया के BJP में शामिल होने और उनके समर्थक विधायकों द्वारा उठाये गये असाधारण क़दम से प्रदेश में संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया है। इस अवसर पर मेरे कुछ बिन्दु :-
१- राज्यपाल :- महामहिम ने दो पत्रों के माध्यम से विधानसभा अध्यक्ष को निर्देशित किया कि वे विधानसभा में उनके अभिभाषण के तत्काल बाद विश्वास मत प्राप्त करने का विषय रखे।
(महामहिम को भलीभाँति मालूम था कि उनका आदेश माना नहीं जाएगा)
२-मुख्यमंत्री :- उनका कहना है कि राज्यपाल ने उन्हें जो संदेश भेजा है उसका उनसे कोई संबंध नहीं है क्योंकि सदन चलाना विधानसभा अध्यक्ष का विशेषाधिकार है। वैसे मैं विश्वास मत के लिए तैयार हूँ तथा निश्चित प्राप्त कर सकता हूँ। (मुख्यमंत्री जी को भलीभाँति मालूम है कि विधानसभा अध्यक्ष उनके निर्देशों के बिना कोई हरकत नहीं कर सकते हैं)
३- विधानसभा अध्यक्ष :- उन्होंने कल सदन में विश्वास मत प्राप्त करने के मुद्दे को काल्पनिक बताया था और कहा था कि यह तो वे केवल सदन में निर्णय ले पाएंगे। उन्होंने कोरोना की समस्या को अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बहुत गंभीरता से लिया है। (विधानसभा में अध्यक्ष लगातार केवल अपनी पार्टी और मुख्यमंत्री के निर्देशों की प्रतीक्षा करते रहे है तथा निर्देश प्राप्त कर पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही सदन में आए )
४-श्री सिंधिया :- विधायकों के मसले पर उन्होंने कोई भी सार्वजनिक वक्तव्य नहीं दिया है।
( वे जानते हैं कि मंत्री पद की डील में सरकार गिराना आवश्यक है और इसके लिए अपने समर्थकों पर निगाह रखे हुए हैं)
५-शिवराज सिंह चौहान:- वे बार बार कह रहे हैं कि इस प्रकरण में उनकी पार्टी का कोई लेना देना नहीं है क्योंकि यह कांग्रेस का आंतरिक संघर्ष है। (वास्तव में वे सरकार गिराने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं सुप्रीम कोर्ट में लगाने के लिए उनकी याचिका ,जिसमें गहन क़ानूनी राय निहित है ,केवल चंद मिनटों में उन्होंने तैयार कर ली)
६-कांग्रेस तथा BJP :- दोनों राजनीतिक दल विधि विशेषज्ञों से गंभीर मंत्रणा कर रहे है।
(यह मंत्रणा केवल इस बात की है कि कहीं कोई क़ानूनी बिंदु मिल जाए जिसका सहारा लेकर संविधान की मूल नैतिकता पर चोट की जा सके)
उपसंहार:- भारत में सभी सामाजिक और राजनैतिक विवादों का अंतिम फ़ैसला माननीय न्यायाधीश,सर्वोच्च न्यायालय ही करते हैं। किसी भी मुद्दे का न्यायोचित निर्णय लेने का सामर्थ्य कार्यपालिका और विधायिका ने खो दिया है। इस प्रकरण में केवल यह देखना है कि न्यायालय का निर्णय कब और क्या आता है तथा विद्रोही विधायकों और भाजपा में कितना स्टैमिना है।
फेसबुक वॉल से साभार